(Zardozi Art)
ज़री का काम या ज़ारदोज़ी, एक ऐसी कला है जो कशीदाकारी और डिजाइनरों के बीच काफी लोकप्रिय है, तथा यह भोपाल के पुराने शहर की संकरी गलियों में जीवित है।
भारत में 17 वीं शताब्दी में मुगल आक्रमणकारियों द्वारा ज़ारदोज़ी की शुरुआत की गई थी। यह कला भारत में फारस से आयी थी।
इसका शाब्दिक अर्थ, ‘ज़ार‘ अर्थात स्वर्ण और ‘दोज़ी‘ अर्थात कढ़ाई है। इस प्रकार, ज़ारदोज़ी, एक फारसी शब्द का अर्थ है “सोने के धागे के साथ कशीदाकारी।”
शुरुआती दौर में ज़ारदोज़ी कढ़ाई में शुद्ध चाँदी के तारों और सोने की पत्तियों का प्रयोग किया जाता था। परन्तु वर्तमान में ज़ारदोज़ी कारीगर सोने अथवा चाँदी की पॉलिश किये हुए तांबे के तार एवं रेशम के धागे का उपयोग करते हैं।
वर्ष 2013 में भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (GIR) ने लखनऊ ज़ारदोज़ी के लिए भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया था।
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